ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है
Wednesday, January 28, 2009
Saturday, January 10, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)