ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है
Monday, December 27, 2010
Sunday, December 26, 2010
Saturday, December 25, 2010
Monday, December 20, 2010
Sunday, December 19, 2010
Saturday, December 18, 2010
Tuesday, December 14, 2010
Monday, December 13, 2010
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